30-11-99  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

पास विद ऑनर बनने के लिए सर्व खज़ानों के खाते को जमा कर सम्पन्न बनो

आज बापदादा किस सभा को देख रहे हैं? आज की सभा में हर एक बच्चा हाइएस्ट और अविनाशी खज़ानों से रिचेस्ट है। दुनिया वाले कितने भी रिचेस्ट हो लेकिन एक जन्म के लिए रिचेस्ट हैं। एक जन्म भी रिचेस्ट रहेगा या नहीं, यह भी निश्चित नहीं है। चाहे कितना भी रिचेस्ट इन वर्ल्ड हो परन्तु एक जन्म के लिए, और आप हो जो निश्चय और नशे से कहते हो कि हम अनेक जन्म रिचेस्ट हैं क्योंकि आप सभी अविनाशी खज़ानों से सम्पन्न हो। आप सभी जानते हो कि हम इस समय के पुरूषार्थ से एक दिन में भी बहुत कमाई करने वाले हैं। जानते हो कि एक दिन में आप कितनी कमाई करते हो? हिसाब जानते हो ना! गाया हुआ है, अनुभव है - `एक कदम में पद्म'। तो एक दिन में बाप द्वारा, बाप की नॉलेज द्वारा, याद द्वारा हर कदम में पद्म जमा होते हैं। तो सारे दिन में जितने भी कदम याद में उठाते हो उतने पद्म जमा करते हो। तो ऐसा कमाई करने वाला, खज़ाना जमा करने वाला विश्व में कोई होगा! वा है? विश्व में चक्कर लगाकर आओ, सिवाए आपके इतना जमा कोई कर नहीं सकता। इसलिए बाप कहते हैं - इस श्रेष्ठ स्मृति में रहो कि हम आत्माओं का भाग्य परम आत्मा द्वारा ऐसा श्रेष्ठ बना है।

अपने खज़ाने तो जानते हो ना! समय के खज़ाने को भी जानते हो कि इस संगमयुग का समय कितना श्रेष्ठ है, जो प्राप्ति चाहिए वह अधिकारी बन बाप से ले रहे हो। सर्व अधिकार प्राप्त कर लिया है ना? एक-एक श्रेष्ठ संकल्प कितना बड़ा खज़ाना है, समय भी बड़ा खज़ाना है, संकल्प भी बड़ा खज़ाना है। सर्व शक्तियाँ बड़े से बड़ा खज़ाना है। एक-एक ज्ञान-रत्न कितना बड़ा खज़ाना है। हर एक गुण कितना बड़ा खज़ाना है। दुनिया वाले भी मानते हैं कि श्वांसों श्वांस याद से श्वांस सफल होते हैं। तो आप सबके श्वांस सफलता स्वरूप हैं, व्यर्थ नहीं। हर श्वांस में सफलता का अधिकार समाया हुआ है। बापदादा ने सभी बच्चों को सर्व खजाने एक जैसे ही दिये हैं। सर्व भी दिये हैं और समान दिये हैं। कोई को एक गुणा, कोई को दस गुणा, कोई को 100 गुणा... ऐसे नहीं दिया है। देने वाले दाता ने एक-एक बच्चे को सर्व खज़ाने ब्राह्मण बनते ही समान रूप में दिये हैं। लेकिन खज़ाने को कितना जमा करते हैं या गँवाते हैं, यह हर एक के ऊपर है। हर एक को चेक करना है कि हम सारे दिन में कितना जमा करते हैं या गँवाते हैं? चेक करते हो? चेक ज़रूर करना है क्योंकि एक जन्म के लिए नहीं है लेकिन हर जन्म के लिए है। अनेक जन्म के लिए जमा चाहिए। जमा करने की विधि जानते हो? बहुत सहज है। सिर्फ बिन्दी लगाते जाओ। बिन्दी याद है तो जमा होता है। जैसे स्थूल खज़ाने में भी एक के साथ बिन्दी लगाते जाओ तो बढ़ता जाता है ना! ऐसे ही आत्मा भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में जो बीत चुका वह भी फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी। अगर हर खज़ाने को बिन्दी रूप से याद करो तो जमा होता जाता। अनुभव है ना! बिन्दी लगाई और व्यर्थ से जमा होता जाता है। बिन्दी लगाने आती है? कई बार ऐसे होता है जो कोशिश करते हो बिन्दी लगाने की लेकिन बिन्दी के बजाए लम्बी लाइन हो जाती है, बिन्दी के बजाए क्वेश्चनमार्क हो जाता है, आश्चर्य की लाइन लग जाती है। तो जमा का खाता बढ़ाने की विधि है `बिन्दी' और गँवाने का रास्ता है लम्बी लाइन लगाना, क्वेश्चनमार्क लगाना, आश्चर्य की मात्रा लगाना। सहज क्या है? बिन्दी है ना! तो विधि बहुत सहज है - स्वमान और बाप की याद तथा फालतू को फुलस्टॉप लगाना।

बापदादा ने पहले भी कहा है - रोज़ अमृतवेले अपने आपको तीन बिन्दियों की स्मृति का तिलक लगाओ तो एक खज़ाना भी व्यर्थ नहीं जायेगा। हर समय, हर खज़ाना जमा होता जायेगा। बापदादा ने सभी बच्चों के हर खज़ाने के जमा का चार्ट देखा। उसमें क्या देखा? अभी तक भी जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना नहीं है। समय, संकल्प, बोल व्यर्थ भी जाता है। चलते-चलते कभी समय का महत्त्व इमर्ज रूप में कम होता है। अगर समय का महत्व सदा याद रहे, इमर्ज रहे तो समय को और ज्यादा सफल बना सकते हो। सारे दिन में साधारण रूप से समय चला जाता है। गलत नहीं लेकिन साधारण। ऐसे ही संकल्प भी बुरे नहीं चलते लेकिन व्यर्थ चले जाते हैं। एक घण्टे की चेकिंग करो, हर घण्टे में समय या संकल्प कितने साधारण जाते हैं? जमा नहीं होते हैं। फिर बापदादा इशारा भी देता है, तो बापदादा को भी दिलासे बहुत देते हैं। बाबा, ऐसे थोड़ा सा संकल्प है बस। बाकी नहीं, संकल्प में थोड़ा चलता है। सम्पूर्ण हो जायेंगे। ठीक हो जायेंगे। अभी अन्त थोड़े ही आया है, थोड़ा समय तो पड़ा है। समय पर सम्पन्न हो जायेंगे। लेकिन बापदादा ने बार-बार कह दिया है कि जमा बहुत समय का चाहिए। ऐसे नहीं जमा का खाता अन्त में सम्पन्न करेंगे, समय आने पर बन जायेंगे! बहुत समय का जमा हुआ बहुत समय चलता है। वर्सा लेने में तो सभी कहते हैं हम तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। अगर हाथ उठवायेंगे कि त्रेतायुगी बनेंगे? तो कोई नहीं हाथ उठाता। और लक्ष्मी-नारायण बनेंगे? तो सभी हाथ उठाते। अगर बहुत समय का जमा का खाता होगा तो पूरा वर्सा मिलेगा। अगर थोड़ा-सा जमा होगा तो फुल वर्सा कैसे मिलेगा? इसलिए सर्व खज़ाने को जितना जमा कर सको उतना अभी से जमा करो। हो जायेगा, आ जायेंगे....गे गे नहीं करो। ``करना ही है'' - यह है दृढ़ता। अमृतवेले जब बैठते हैं, अच्छी स्थिति में बैठते हैं तो दिल ही दिल में बहुत वायदे करते हैं - यह करेंगे, यह करेंगे। कमाल करके दिखायेंगे... यह तो अच्छी बात है। श्रेष्ठ संकल्प करते हैं लेकिन बापदादा कहते हैं इन सब वायदों को कर्म में लाओ। सिर्फ वायदा नहीं करो लेकिन जो भी वायदे करते हो वह मन-वचन और कर्म में लाओ। बच्चे संकल्प बहुत अच्छे-अच्छे करते हैं, बापदादा उस समय खुश होते हैं क्योंकि हिम्मत तो रखते हैं ना। यह बनेंगे, यह करेंगे... हिम्मत बहुत अच्छी रखते हैं। तो हिम्मत पर बापदादा खुश होते हैं। परन्तु जब कर्म में आना होता है तो कभी-कभी हो जाता है। वायदा करना बहुत सहज है। लेकिन कर्म में करना माना वायदा निभाना। वायदे करने वाले तो बहुत हैं लेकिन निभाने में नम्बरवार हो जाते हैं। तो संकल्प और कर्म को, प्लैन और प्रैक्टिकल दोनों को समान बनाओ। बना सकते हो ना? बिज़नेस वाले आये हैं। बिज़नेस वाले तो बिज़नेस करना जानते हैं ना! जमा करना जानते हैं ना! और इन्जीनियर व वैज्ञानिक भी प्रैक्टिकल में काम करते हैं। और जो रूरल (ग्रामीण प्रभाग) है, बापदादा उन्हों को `रूलर' कहते हैं, क्योंकि अगर यह सेवा नहीं करते तो कोई नहीं चल पाते। तो तीनों ही विंग जो आये हैं वह कर्म करने वाले हैं। सिर्फ कहने वाले नहीं, करने वाले हैं। तो सभी वायदे कर्म में निभाने वाली आत्माये हो ना! या सिर्फ वायदा करने वाले हो? वायदे के समय तो बापदादा को हिम्मत दिखाकर खुश कर देते हैं। बापदादा के पास हर एक बच्चे के वायदों का फाइल है। वहाँ (वतन में) वायदों का फाइल रखने के लिए अलमारी वा जगह की तो बात है नहीं। कभी-कभी बापदादा अपनी अलौकिक टी.वी. अचानक खोलते हैं। सदा नहीं खोलते हैं, कभी-कभी खोलते हैं तो सब सुनने में आता है। जो आपस में बोलचाल करते हैं, वह भी सुनते हैं। इसीलिए बापदादा कहते हैं - व्यर्थ को जमा के खाते में जमा करो।

ब्राह्मण अर्थात् अलौकिक। ब्राह्मण जीवन का महत्त्व बहुत बड़ा है। प्राप्तियां बहुत बड़ी हैं। स्वमान बहुत बड़ा है और संगम के समय पर बाप का बनना, यह बड़े-से-बड़ा पद्मगुणा भाग्य है। इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर खज़ाने का महत्त्व रखो। जैसे दूसरों को भाषण में संगमयुग की कितनी महिमा सुनाते हो। अगर आपको कोई टॉपिक देवें कि संगमयुग की महिमा करो तो कितना समय कर सकते हो? एक घण्टा कर सकते हो? टीचर्स बोलो। जो कर सकता है वह हाथ उठाओ। तो जैसे दूसरों को महत्त्व सुनाते हो, महत्त्व जानते बहुत अच्छा हो। बापदादा ऐसे नहीं कहेगा कि जानते नहीं हैं। जब सुना सकते हैं तो जानते हैं तब तो सुनाते हैं। सिर्फ है क्या कि मर्ज हो जाता है। इमर्ज रूप में स्मृति रहे - वह कभी कम हो जाता है, कभी ज्यादा। तो अपना ईश्वरीय नशा इमर्ज रखो। हाँ मैं तो हो गई, हो गया... नहीं। प्रैक्टिकल में हूँ... यह इमर्ज रूप में हो। निश्चय है लेकिन निश्चय की निशानी है - `रूहानी नशा'। तो सारा समय नशा रहे। रूहानी नशा - मैं कौन! यह नशा इमर्ज रूप में होगा तो हर सेकण्ड जमा होता जायेगा।

तो आज बापदादा ने जमा का खाता देखा इसलिए आज विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं कि समय की समाप्ति अचानक होनी है। यह नहीं सोचो कि मालूम तो पड़ता रहेगा, समय पर ठीक हो जायेंगे। जो समय का आधार लेता है, समय ठीक कर देगा, या समय पर हो जायेगा.... उनका टीचर कौन? समय या स्वयं परम-आत्मा? परम-आत्मा से सम्पन्न नहीं बन सके और समय सम्पन्न बनायेगा, तो इसको क्या कहेंगे? समय आपका मास्टर है या परमात्मा आपका शिक्षक है? तो ड्रामा अनुसार अगर समय आपको सिखायेगा या समय के आधार पर परिवर्तन होगा तो बापदादा जानते हैं कि प्रालब्ध भी समय पर मिलेगी क्योंकि समय टीचर है। समय आपका इन्तजार कर रहा है, आप समय का इन्तजार नहीं करो। वह रचना है, आप मास्टर रचता हो। तो रचता का इन्तजार रचना करे, आप मास्टर रचता समय का इन्तजार नहीं करो। और मुश्किल है भी क्या? सहज को स्वयं ही मुश्किल बनाते हो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाते हो। जब बाप कहते हैं जो भी बोझ लगता है वह बोझ बाप को दे दो। वह देना नहीं आता। बोझ उठाते भी हो फिर थक भी जाते हो फिर बाप को उल्हना भी देते हो - क्या करें, कैसे करें...! अपने ऊपर बोझ उठाते क्यों हो? बाप आफर कर रहा है - अपना सब बोझ बाप के हवाले करो। 63 जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मज़बूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों? कोई कारण होगा ना! कारण है - आदत से मज़बूर हो जाते हैं और बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, यही सबसे बड़ी बात लगती है। अच्छी नहीं लगती है। मास्टर सर्वशक्तिवान और मुश्किल? टाइटल अपने को क्या देते हो? मुश्किल योगी या सहज योगी? नहीं तो अपना टाइटल चेंज करो कि हम सहज योगी नहीं हैं। कभी सहजयोगी हैं, कभी मुश्किल योगी? और योग है ही क्या? बस, याद करना है ना। और पावरफुल योग के सामने मुश्किल हो ही नहीं सकती। योग लगन की अग्नि है। अग्नि कितना भी मुश्किल चीज़ को परिवर्तन कर देती है। लोहा भी मोल्ड हो जाता है। यह लगन की अग्नि क्या मुश्किल को सहज नहीं कर सकती है? कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं, बाबा क्या करें वायुमण्डल ऐसा है, साथी ऐसा है। हंस, बगुले हैं, क्या करें पुराने हिसाब किताब हैं। बातें बहुत अच्छी-अच्छी कहते हैं। बाप पूछते हैं - आप ब्राह्मणों ने कौन सा ठेका उठाया है? ठेका तो उठाया है - विश्व-परिवर्तन करेंगे। तो जो विश्व-परिवर्तन करता है वह अपनी मुश्किल को नहीं मिटा सकता?

तो आज क्या करेंगे? जमा का खाता बढ़ाओ। तो जो कहते हो सहज योगी, वह अनुभव करेंगे। कभी मुश्किल कभी सहज, इसमें मजा नहीं है। ब्राह्मण जीवन है मजे की। संगमयुग है मजे का युग। बोझ उठाने का युग नहीं है। बोझ उतारने का युग है। तो चेक करो, अपने तकदीर की तस्वीर नॉलेज के आइने में अच्छी तरह से देखो। आइना तो है ना? या नहीं है? टूट तो नहीं गया है ना? सभी को आइना मिला है? मातायें, आइना मिला है या चोरी हो गया है? पाण्डव तो सम्भालने में होशियार हैं ना? आइना है? हाथ तो अच्छा उठाया। अच्छा है। तकदीर की तस्वीर देखो और सदा अपने तकदीर की तस्वीर देख वाह-वाह का गीत गाओ। वाह मेरी तकदीर! वाह मेरा बाबा! वाह मेरा परिवार! परिवार भी वाह-वाह है! ऐसे नहीं यह तो बहुत वाह-वाह है, यह थोड़ा ऐसा है! नहीं। वाह मेरा परिवार! वाह मेरा भाग्य! और वाह मेरा बाबा! ब्राह्मण जीवन अर्थात् वाह-वाह! हाय-हाय नहीं। शारीरिक व्याधि में भी हाय-हाय नहीं, वाह! यह भी बोझ उतरता है। अगर 10 मण से आपका 3-4 मण बोझ उतर जाए तो अच्छा है या हाय-हाय? क्या है? वाह बोझ उतरा! हाय मेरा पार्ट ही ऐसा है! हाय मेरे को व्याधि छोड़ती ही नहीं है! आप छोड़ो या व्याधि छोड़ेगी? वाह-वाह करते जाओ तो वाह-वाह करने से व्याधि भी खुश हो जायेगी। देखो, यहाँ भी ऐसे होता है ना, किसकी महिमा करते हो तो वाह-वाह करते हैं। तो व्याधि को भी वाह-वाह कहो। हाय यह मेरे पास ही क्यों आई, मेरा ही हिसाब है! प्राप्ति के आगे हिसाब तो कुछ भी नहीं है। प्राप्तियां सामने रखो और हिसाब-किताब सामने रखो, तो वह क्या लगेगा? बहुत छोटी सी चीज़ लगेगी। मतलब तो ब्राह्मण जीवन में कुछ भी हो जाए, पॉजिटिव रूप में देखो। निगेटिव से पॉजिटिव करना तो आता है ना। निगेटिव-पॉजिटिव का कोर्स भी तो कराते हो ना! तो उस समय अपने आपको कोर्स कराओ तो मुश्किल सहज हो जायेगा। मुश्किल शब्द ब्राह्मणों की डिक्शनरी में नहीं होना चाहए। अच्छा –

कोई भी हिसाब है, आत्मा से है, शरीर से है या प्रकृति से है; क्योंकि प्रकृति के यह 5 तत्व भी कई बार मुश्किल का अनुभव कराते हैं। कोई भी हिसाब-किताब योग अग्नि में भस्म कर लो। समझा क्या करना है? जमा का खाता बढ़ाओ। बोल में भी साधारण बोल नहीं, बोल में भी भिन्न-भिन्न भाव और भावना होती है और बोल द्वारा भाव और भावना का पता पड़ जाता है। तो सदा जो भी बोल बोलो उसमें आत्मिक भाव हो और शुभ व श्रेष्ठ भावना हो। बोल भी और भावना भी। माया की जो भावना है वह है ईर्ष्या, हसद, घृणा... यह माया की भावना है। सदा शुभ भाव और भावना हो। ऐसा है? चेक करना। समय का खज़ाना, बोल का खज़ाना, संकल्पों का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, ज्ञान का खज़ाना, गुणों का खज़ाना... एक-एक खज़ाने को चेक करो क्योंकि हर खज़ाने का खाता जमा करना है। इन सर्व खज़ानों का खाता भरपूर हो तब कहेंगे फुल मार्क्स अर्थात् पास विद् ऑनर। ऐसे नहीं सोचना - एक खज़ाना अगर कम जमा है तो क्या हर्जा है लेकिन पास विद् ऑनर बनने के लिए सर्व खज़ानों में खाता भरपूर हो।

बापदादा के सामने जो आप बैठे हैं सिर्फ उन्हों को नहीं देख रहे हैं। जो भी बच्चे देश में हैं या विदेश में हैं, सभी को देख रहे हैं। सम्मुख नहीं हैं लेकिन दिल में हैं। आज आप सम्मुख हो, कल और होंगे। लेकिन ऐसे नहीं कि आपको बापदादा नहीं देखते। वह दिल में हैं, आप सम्मुख हो। ऐसे नहीं आप दिल में नहीं हो लेकिन सम्मुख हो उसका महत्त्व है। समझा। अच्छा।

बिज़नेस वाले हाथ उठाओ। बिज़नेस वाले क्या सोचते हैं? खास आपको चांस मिला है। बिज़नेस वालों को बाप से भी बिज़नेस कराओ। सिर्फ खुद किया वह तो अच्छा किया लेकिन औरों को भी बाप से बिज़नेस कराओ क्योंकि आजकल सर्व बिज़नेसमैन टेन्शन में बहुत हैं। बिज़नेस समय अनुसार नीचे जा रहा है। इसलिए जितना भी पैसा है, पैसे के साथ चिंता है - क्या होगा! तो उन्हों को चिंता से हटाए अविनाशी खज़ाने का महत्व सुनाओ। तो जितने भी बिज़नेसमैन आये हैं चाहे छोटा बिज़नेस है, चाहे बड़ा है। लेकिन अपने हमजिन्स कार्य करने वालों को खुशी का रास्ता बताओ। जो भी आप बिज़नेसमैन आये हैं उन्हों को चिंता है? क्या होगा, कैसे होगा, चिंता है? चिंता नहीं है तो हाथ उठाओ। कल कुछ हो जाये तो? बेफिकर बादशाह हैं? बिज़नेसमैन बेफिक्र बादशाह हैं? थोड़ों ने हाथ उठाया? जिसको थोड़ा-थोड़ा फिकर है वह हाथ उठा सकते हो या शर्म आयेगा? बापदादा ने टाइटल ही दिया है - बेफिक्र बादशाह, बेगमपुर के बादशाह। तो जब भी कोई ऐसी बात आये, आयेगी तो ज़रूर लेकिन आप बेगमपुर में चले जाना। बेगमपुर में बैठ जाना तो बादशाह भी हो जायेंगे और बेगमपुर में भी हो जायेंगे। आपने ही आह्वान किया है कि पुरानी दुनिया जाये और नई दुनिया आये, तो जायेगी कैसे? नीचे ऊपर होगी तब तो जायेगी। कुछ भी हो जाए आपको बेफिक्र बनना ही है। आपने ही आह्वान किया है, पुरानी दुनिया खत्म हो। तो पुरानी दुनिया में पुराने मकान में क्या होता है? कभी क्या टूटता है, कभी क्या गिरता है, तो यह तो होगा ही। नथिंगन्यु। ब्रह्मा बाप का यही हर बात में शब्द था - ``नथिंगन्यु।'' होना ही है, हो रहा है और हम बेफिक्र बादशाह। ऐसे बेफिक्र हो? बेफिक्र होंगे तो देवाला भी बच जायेगा और फिक्र में होंगे, निर्णय ठीक नहीं होगा तो एक दिन में क्या से क्या बन जाते हैं। यह तो जानते ही हो। बेफिक्र होंगे, निर्णय अच्छा होगा तो बच जायेंगे। टचिंग होगी - अभी समय अनुसार यह करें या नहीं करें! इसीलिए फिक्र माना बिज़नेस भी गिरना और अपनी स्थिति भी गिरना। तो सदैव यह याद रखो - बेफिक्र बादशाह हैं। फिक्र की बात भी बदल जायेगी। हिम्मत नहीं हारो, दिलशिकस्त कभी नहीं हो। हिम्मत से बाप की मदद मिलती रहेगी। बाप मदद के लिए बंधा हुआ है लेकिन हिम्मतहीन का मददगार नहीं है। आप सोचेंगे कि बाप की मदद तो मिली नहीं, लेकिन पहले यह सोचो हिम्मत है? हिम्मत बच्चे की मदद बाप की। आधा शब्द नहीं पकड़ो, बाप की मदद तो चाहिए ना! लेकिन हिम्मत रखी? दिलशिकस्त न होकर हिम्मत रखते चलो तो मदद गुप्त मिलती रहेगी। तो बोलो कौन हो? बिज़नेसमैन सभी बोलो कौन हो? बेफिक्र बादशाह हो? यह याद रखना। हिम्मत कभी नहीं छोड़ना, कुछ भी हो जाए मदद मिलेगी। लेकिन आधा नहीं याद करना। पूरा याद रखना। अच्छा।

मातायें बिजनेसमैन नहीं हैं? (हैं) तो मातायें भी बेफिक्र बादशाह हैं? नौकर नहीं बन जाना। मालिक, बादशाह बनकर रहना। चिंता है तो उदासी है। उदासी माना दासी बनना। इसलिए बादशाह बनना। अच्छा।

दूसरे हैं - इन्जीनियर और वैज्ञानिक वह हाथ उठाओ। वैज्ञानिकों को बहुत अच्छा अनुभव है। जैसे साइंस दिनप्रतिदिन अति सूक्ष्म, महीन होती जाती है। ऐसे आप साइलेन्स और साइंस - दोनों के अनुभवी हो। तो अपने हमजिन्स को साइलेन्स का महत्त्व सुनाओ। उनका भी कल्याण करो। कल्याण करना आता है ना? साइलेन्स भी एक विज्ञान है, साइलेन्स का विज्ञान क्या है, उसकी इन्हों को पहचान दो। साइलेन्स के विज्ञान से क्या-क्या होता है, यह जानने से साइंस भी ज्यादा रिफाइन कर सकेंगे क्योंकि हमारी नई दुनिया में भी विज्ञान तो काम में आयेगा ना! लेकिन रिफाइन रूप में होगा। अभी के विज्ञान की इन्वेन्शन में फायदा भी है, नुकसान भी है। लेकिन नई दुनिया में रिफाइन विज्ञान होने के कारण नुकसान का नाम-निशान नहीं होगा। तो ऐसे जो बड़े-बड़े वैज्ञानिक हैं उन्हों को साइलेन्स का ज्ञान दो। तो फिर अपनी नई दुनिया में रिफाइन विज्ञान का कार्य करने में मददगार बनेंगे। कितनी संख्या है वैज्ञानियों की? जो अभी आये हैं वह कितने हैं? (350) फिर जब आओ तो कितने आयेंगे? 350 ही आयेंगे? क्या करेंगे? एक-एक, एक को लायेंगे? लाना है तो हाथ उठाओ। आपका नाम तो नोट है। बापदादा देखेंगे। एक, एक को तो आप समान बनाकर लाओ। जो लायेंगे वह हाथ उठाओ, इन्हों का टी.वी. निकालो। यह भी एक मौज मनाना है और क्या है? अच्छा- बिज़नेसमैन हाथ उठाओ, इनका भी टी.वी. निकालो।

वैज्ञानिकों के साथ इन्जीनियर भी हैं। इन्जीनियर क्या करेंगे? इन्जीनियर कुछ न कुछ नया बनाते हैं। तो सतयुग में नई दुनिया बनाने के लिए औरों को तैयार करो। आप तो राजा बनेंगे ना! आप थोड़े ही मकान बनाने वाले बनेंगे। तो ऐसी आत्मायें तैयार करो जो नई दुनिया की रचना बहुत अच्छे-से-अच्छी कर सकें। ऐसी इन्जीनियरी करें जो सारे कल्प में ऐसी चीजें नहीं हों। चाहे द्वापर कलियुग में बहुत बढ़िया-बढ़िया चीजें बनाते हैं लेकिन नई दुनिया में ऐसी आश्चर्यजनक चीजें हों जो आजकल की श्रेष्ठ चीजों से सर्वश्रेष्ठ हों। ऐसे इन्जीनियर्स को तैयार करो। चलो पूरा ज्ञान नहीं लेवें, रेग्युलर नहीं बनें लेकिन बाप को तो पहचानें। कई ऐसी आत्मायें हैं जो रेग्युलर नहीं बनती हैं लेकिन निश्चय और खुशी में रहती हैं। सम्बन्ध में सहयोगी रहती हैं। ऐसी आत्मायें भी तैयार करो। समझा! बहुत अच्छा। देखो आपका खास पार्ट इस टर्न में रखा है। तो कोई खास कमाल करेंगे ना! अभी रिज़ल्ट देखेंगे - बिज़नेसमैन कितने लाते हैं, इंजीनियर और वैज्ञानिक कितने लाते हैं? संख्या का तो पता चलेगा ना। रिपोर्ट निकलती है ना कि इतनी संख्या बढ़ गई। तो जो विंग के ऊपर हैं उन्हों को एक वर्ष की रिज़ल्ट लिखनी है। यह सब एक वर्ष के बाद तो आयेंगे ना। संख्या देखेंगे कितनी बढ़ी!

हॉस्पिटल के ट्रस्टी - आप सभी क्या कमाल करेंगे? जो पेशेन्ट आवे उसको पेशेन्स देकर दूसरों को लेकर आओ। विदेश से भी लाओ। अच्छा –

तीसरा ग्रुप रूरल - हाथ उठाओ। इसमें मातायें भी हैं, टीचर्स भी हैं। अच्छा आप लोग क्या करेंगे? गाँव-गाँव को महल बनाना। गांव की ऐसी सेवा करो जो सतयुगी दुनिया में वह गाँव महल बन जायें। सभी को नई दुनिया का परिचय दो। गाँव वाले बहुत प्यार से सुनते हैं। बड़े-बड़े लोग तो कम सुनते हैं लेकिन गाँव वाले लोग बहुत प्यार से सुनते हैं और गाँव को बदलकर दिखाओ। जो गवर्मेन्ट को मालूम पड़े कि यह गाँव कितना बदल गया है। बदल सकते हो? कोई ऐसा गाँव हो जिसमें प्रैक्टिकल गवर्मेन्ट के आगे एक प्रूफ दिखाओ। गाँव-गाँव में सेवा तो की है लेकिन इनमें से कोई एक गाँव गवर्मेन्ट को दिखाओ कि देखो इस गाँव में कितना परिवर्तन आया है। ऐसा हो सकता है? (ऐसी सेवा की है) तो वह गवर्मेन्ट तक पहुंचाओ। गवर्मेन्ट के आगे रिकार्ड रखो। देखो - एक बात है, गवर्मेन्ट कहती है कि आप सोशल सेवा नहीं करते। लेकिन आजकल बाम्बे में जो बगीचे बदलकर अच्छे सुन्दर बनाये हैं और बढ़ते जाते हैं। तो किचड़े के स्थान को पार्क बनाना, अनेक आत्माओं के निमित्त बनना, क्या यह देश का सोशल वर्क नहीं है। कितने घरों को मच्छर और जो भी जर्मस हैं उनसे बचाया। सोशल वर्क क्या है? यह सोशल वर्क तो है। तो ऐसा एक्ज़ाम्पल आस-पास वालों का साइन लेकर गवर्मेन्ट को दो। वह लिखकर दें कि इन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। बच्चों के लिए खेलने-कूदने का स्थान बनाना, उनकी तन्दरूस्ती बढ़ाना... यह सोशल वर्क नहीं है तो क्या है, तो ऐसे फोटो निकालो, बच्चों के भी फोटो निकालो, बड़ों के भी फोटो निकालो और जितनों का परिवर्तन हुआ है, उनके भी साइन कराओ फिर गवर्मेन्ट को दिखाओ कि हम सोशल वर्क करते हैं या नहीं करते हैं। समझा। ऐसा रिकार्ड तैयार करो। जितने बगीचे मिले हैं, उन सबका रिकार्ड तैयार करो। क्या है गवर्मेन्ट को पता तो पड़ता ही नहीं है और उल्टी बातें बहुत जल्दी फैलती हैं। अच्छी सेवा कम फैलती है। इसलिए यह सोशल वर्क का एक्ज़ाम्पल दिखाओ। जो कहते हैं ना सोशल वर्क नहीं करते उन्हों को यह दिखाओ। कितनी खुशी प्राप्त होती है। सोशल वर्कर क्या करते हैं? किसका दु:ख दूर करके खुशी देते हैं। उसको सेट करते हैं, आप तो दिमाग को सेट कर देते हो। यह सोशल वर्क नहीं है तो क्या है! तो सेवा बहुत करते हो लेकिन रिकार्ड कम तैयार करते हो। जैसे बाम्बे की अखबारें हैं उसमें डाल सकते हो कि इतनी आत्मायें आती हैं, इतने बच्चे आते हैं उन्हों की खुशी के साधन हैं, उन्हों की तन्दरूस्ती बनती है, ऐसे-ऐसे रिकार्ड तैयार करो। अच्छा। (बाम्बे का कमला नेहरू पार्क भी मिल रहा है) वह भी मिल जायेगा। और आप लोगों को जो ऐसे लैटर मिलते हैं, वह और शहरों में दिखाकर वहाँ भी कर सकते हो। अच्छा।

नये-नये जो पहली बार आये हैं, वह हाथ उठाओ। ड्रामा अनुसार आये तो अभी हैं लेकिन बापदादा का स्लोगन याद है? लास्ट सो फास्ट और फास्ट जाकर फर्स्ट आ सकते हैं। मार्जिन है। फर्स्ट जा सकते हो। लेकिन जमा का खाता ज्यादा से ज्यादा इकट्ठे करो। अपना भाग्य याद रहता है ना? विशेष नयों को कह रहे हैं। जिसको भाग्य याद रहता है वह हाथ उठाओ।

अच्छा - जो एक सेकण्ड में अपने संकल्प को जहाँ चाहे, जो सोचना चाहें वही सोच चलता रहे, ऐसे जो समझते हैं, वह हाथ उठाओ। एक सेकण्ड में माइण्ड कण्ट्रोल हो जाए, ऐसे सेकण्ड में हो सकता है? अगर कर सकते हो तो हाथ उठाओ। ऐसे कहने से नहीं, अगर कण्ट्रोल होता है तो हाथ उठाओ? अच्छा जिन्होंने नहीं हाथ उठाया उन्हों को क्या एक मिनट लगता है? या उससे भी ज्यादा लगता है? अभी यह अभ्यास बहुत ज़रूरी है क्योंकि अन्त के समय यह अभ्यास बहुत काम में आयेगा। जैसे इस शरीर के आरगन्स को, बाँह है, पाँव है, इनको सेकण्ड में जहाँ लेकर जाने चाहो वहाँ ले जा सकते हो ना! ऐसे मन और बुद्धि को भी मेरी कहते हो ना! जब मन के मालिक हो, यह सूक्ष्म आरगन्स हैं, तो इसके ऊपर कण्ट्रोल क्यों नहीं? संस्कार के ऊपर भी कण्ट्रोल होना चाहिए। जब चाहो, जैसे चाहो - जब यह अभ्यास पक्का होगा तब समझो पास विद् ऑनर होंगे। तो बनना लक्ष्मी-नारायण है, तो राज्य को कण्ट्रोल करने के पहले स्व-राज्य अधिकारी तो बनो तब राज्य अधिकारी बनेंगे। इसका भी साधन यही है कि खजाने जमा करो। समझा। अच्छा - इस वायुमण्डल में, मधुबन में बैठे हो। मधुबन का वायुमण्डल पावरफुल है, इस वायुमण्डल में इस समय मन को कण्ट्रोल कर सकते हो? चाहे मिनट में करो, चाहे सेकण्ड में करो लेकिन कर सकते हो? ऑर्डर दो मन को, बस आत्मा परमधाम निवासी बन जाओ। देखो मन ऑर्डर मानता है या नहीं मानता है? (ड्रिल) अच्छा।

चारों ओर के सर्व खज़ानों के मालिक बच्चों को, सदा मुश्किल को सेकण्ड में परिवर्तन करने वाले सदा सहजयोगी, सदा संकल्प, समय, बोल, कर्म को श्रेष्ठ बनाने वाले, सदा बचत का खाता बढ़ाने वाले, सदा मन के मालिक, मन-बुद्धि-संस्कार को ऑर्डर में चलाने वाले, ऐसे स्व-राज्य अधिकारी बच्चों को, चाहे देश में हैं चाहे विदेश में हैं लेकिन दिल से दूर नहीं हैं, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

सेवाधारी जो भी सेवा के प्रति आये हैं, विशेष - यू.पी. का टर्न है। यू.पी. के जो सेवाधारी आये हैं वह हाथ उठाओ। देखो सेवाधारियों को कितने फायदे हैं। सदा गाया हुआ है, ब्राह्मणों की सेवा महान पुण्य है। भक्ति मार्ग में 100 या 200 ब्राह्मणों की सेवा करते हैं और मधुबन में कितने ब्राह्मणों की सेवा करते हो और एक-एक ब्राह्मण की दुआ सेवाधारियों को स्वत: ही मिलती है। कहने की आवश्यकता नहीं है लेकिन जमा हो ही जाती है एक तो दुआओं का खाता जमा होता, दूसरा सेवा के पुण्य का खाता जमा होता, तीसरा ब्राह्मणों के समीप सम्बन्ध में आते हैं और बापदादा से मिलने का एक्स्ट्रा टर्न मिल जाता है। तो सेवा का फल कितना है! सेवाधारी अर्थात् जमा करने वाले। तो बहुत अच्छी सेवा की। दिल से सेवा की और दिलाराम के पास पहुंच गई। यू.पी. वाले ठीक हैं ना! तो जो भी सेवाधारी बनकर आता है उसको प्रत्यक्ष फल मिलता है। भविष्य तो मिलेगा लेकिन वर्तमान समय में भी जमा होता है।

डबल विदेशी भी बहुत बैठे हैं। डबल विदेशी हाथ उठाओ। देखो, डबल विदेशियों को चांस भी बहुत मिलता है। हर ग्रुप में डबल विदेशी हैं। डबल विदेशियों को कोई भी टर्न में मना नहीं है। तो यह कम भाग्य है क्या? आप सभी जानते हो कि इन्हों का त्याग, इन्हों की हिम्मत और दिल की सफाई पर बापदादा सदा खुश होता है। आप लोग क्या कहते हो? सच्ची दिल तो मुराद हांसिल... तो यह साफ और सच्ची दिल वाले हैं। अगर गिरेंगे तो भी सच बतायेंगे, छिपायेंगे नहीं और सच सुनाने से आधा माफ हो जाता है। इसलिए बापदादा डबल विदेशियों को सदा याद करते हैं और सदा यादप्यार देते हैं। कमाल तो है और कमाल करते-करते बापदादा के साथ अपने घर में पहुँच जायेंगे। तो विशेष डबल विदेशियों को पद्मगुणा यादप्यार। ऐसे नहीं भारतवासियों को नहीं है। भारतवासियों को फिर पद्म-पद्मगुणा यादप्यार।

इन्दौर होस्टल की कन्यायें - कन्याओं के लिए गाया हुआ है कि हर एक कन्या 100 ब्राह्मणों से उत्तम है, क्यों उत्तम है? क्योंकि सेवा कर इतने ब्राह्मणों की दुआ लेनी है। तो कुमारियां बोर्डिंग से निकल क्या करेंगी? क्या लक्ष्य रखा है? सेवा करेंगी? सिर पर ताज रखेंगी या टोकरी रखेंगी? क्या करेंगी? (ताज) नौकरी की टोकरी तो नहीं उठायेंगी? 100 ब्राह्मणों से उत्तम का अर्थ ही है 100 ब्राह्मण की दुआयें लेंगी। तो इतनी सेवा करेंगी? अच्छा। एडवांस में मुबारक हो। सभी की दुआयें लेना। अच्छा।

(बापदादा पूरे हाल का चक्कर लगाकर सभी बच्चों को दृष्टि देकर वापस स्टेज पर पहुँचे हैं)

मोहिनी बहन की तबियत ठीक नहीं हैं, अहमदाबाद से चेकिंग कराकर बापदादा के सामने आई हैं। है ही ठीक। ठीक थी, ठीक है और ठीक रहेगी। (डाक्टर ने 6-7 दिन की रेस्ट बोली है) बहुत जल्दी ठीक हो गई। हिम्मत रखी तो हिम्मत और मदद से पहुंच गई। यह बीच का चक्र लगाकर आई।

दादियों से - अच्छी सेवा की। बहुत अच्छा है। जो निमित्त हैं उन्हों को समय पर एक्स्ट्रा शक्ति मिल जाती है। देखो आप सब आदि रत्नों के आधार से स्थापना का कार्य चल रहा है। ऐसे है ना? बापदादा तो सदा सर्विसएबुल रत्नों को देखते रहते हैं। ठीक है ना। शरीर का हिसाब है लेकिन `सूली से काँटा' हो जाता है। परेशान नहीं होते। हिसाब-किताब चुक्तू होता है लेकिन परेशान नहीं होते, शान में रहते हैं। औरों को भी शान याद दिलाते हैं। मालिक हैं ना। शरीर को चलाने की रमज़ (युक्ति) सीख गये हैं। शरीर का भी आपसे प्यार है ना! महारथियों से सबका प्यार है। प्यार है ना। (दादी जी को) देखो कितना काम करती हैं? लेकिन सदा हर्षित। सीखते हो ना। कभी थकावट के चिह्न नहीं होते। यह है बाप समान की निशानी। ब्रह्मा बाबा महारथियों को, विशेष बच्ची को सब वरदान, शक्तियाँ और ज़िम्मेवारी सब देकर गये। आप लोगों के लिए बापदादा ने विशेष इन्हों को अथक बनने का वरदान दिया है। आप सब भी अथक बन विश्व को परिवर्तन कर रहे हैं और करते रहेंगे। अच्छा। पाण्डव भी महान हैं।

ओमशान्ति।